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मां अम्बे मातारानी के दरबार में लगती है भक्तों की अपार भीड़, नवरात्र में होती है महाआरती नि संतानों लोगों को होती है संतान की प्राप्ति

(भैंसदेही शंकर राय)पूर्ण नगरी भैंसदेही में नवरात्र पर माता रानी की उपासना का पर्व धुमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व से नगर में रौनक दिखाई दे रही है। पूर्णा नगरी के समस्त वाड़ों में माँ भगवती की मूर्तियों की स्थापना कर नौ दिन पूजा अर्चना कर भक्क उपवास रखते है। भक्तगण रोजाना मां के मंदिर में जल बढ़ाने के लिए भी जाते हैं। नवरात्र में मंदिर में भक्तों की भीड़ अल सुबह से लगना शुरू हो जाती है।
भैंसदेही नगर के वार्ड में स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर में नवरात्रि पर विशेष महा आरती होती है। जिसमें सैकड़ों भक्त महाआरती में सम्मिलित होकर माँ भगवती के पास अपनी अर्जी लगते हैं। दुर्गा मंदिर के स्थापना को लेकर लोगों का कहना है कि पैसदेही को पहले राजा महाराजा के समय इस नगरी का नाम महकावती था। गययता के राजा थे। एक समय गया राजा के यहाँ पर साधुओं को टोली आयी। उन्होंने गय राजा को आप देने के उददेश्य से कहा कि हमें आप सुबह दूध का भोजन सभी साधुओं को करवायेंगे। राजा ने यह कह कर चिंता व्यता की और उन्होंने सोचा कि साधुओं के कहे अनुसार इतने सारे साधुओं को दूध का भोजन कराने हेतु इतना दुध कहा से उपलब्ध होगा। इसकी चिंता करते हुए वे अधुरादेव बाबा नगर के वार्ड क्रमांक 1 बगदरा जाकर भगवान शंकर पार्वती की आराधना की और कहा कि साधुओं को कल मुझे दूध का भोजन करना है। 
आप मेरी रक्षा कीजिये तत्पक्षात भगवान शंकर ने अपने सर से चंद्र निकालकर धरती पर छोड़ दिया। उस चन्द्र से चन्द्रकान्या प्रकट हुई तब भगवान शंकर ने कन्या को दूध से भरा कर्मडत दिया और कहा कि तुम राजा के साथ जाओ और इनका सहयोग करी। गया राजा कन्या को अपने साथ लेकर में आ गए। सुबह जब साधु पूजा अर्चना कर भोजन के लिये राजा के पास पहुचे तो राजा ने उन्हें सम्मानपूर्वक बिठलाया और चन्द्रकन्या से निवेदन किया कन्या ने सचको कमण्डल में भरा हुआ दुध परीया। सभी का भोजन पूर्ण हो जाने के बाद भी इस कन्या के कमण्डल
का दूध खाम नहीं हुआ तो साधुओं का मन चन्द्रकन्या की और आकर्षित हुआ। तथा चन्द्रकन्या को पाने की लालसा में इस सोच के साथ कि यदि यह कन्या हमारे साथ रहेंगी तो हमे कभी दूध की कमी नही होगी। सभी साधु उस कन्या को और दौड़ने लगे। कन्या वहां से भागकर राजा गय के पास पहुंची और कहने लगी कि मेरी रक्षा करो, गय राजा ने कहा कि मुझमें इतना
सामध्य नहीं, मैं कुछ नहीं कार सकता। आप भगवान शंकर के पास हो जाइये। यही कोई उपाय करेंगे। इसी के पक्षात कन्या भगवान शंकर के पास वापस बगदरा गयी और कहा कि भगवन मेरी रक्षा करो और कहा कि मुझे फिर से सिर पर धारण कर लो। तब भगवान शंकर ने कहा कि मैंने जिसे एक बार शोड़ दिया उसे में दोबारा धारण नहीं करता तब चन्द्रकन्या बोरी कि भगवन मेरी रक्षा कैसे होंगी भगवान शंकर ने कहा कि आप यहाँ से तुम हो जाओ और थोते दूर जाकर प्रकट हो जाओं और धरती पर रहकर सबका कल्याण करो। इसी तरह चन्द्रकन्या जहाँ लुष हुयी यह बगदरा के पहाडी में स्थान देखने को मिलता है साथ हो तुम होने के बाद जहां से प्रकट हुई उसे नगर के काशी तालाब के नाम से जाना जाता है। 
जहा आज भी भैंसदेही नगर और महाराष्ट्र के लोगो का जत्था मार्च के माह में पाप मोचनी एकादशी के दिन बी संख्या में नगर भ्रमण कर ग्यारश के दिन विशाल भंडारे का कार्यक्रम किया जाता है। उसी क्रम में आपको बताये की चन्द्रकन्या ने भगवान शंकर का प्रस्ताव स्वीकार कर की आप मेरे माता और पिता दोनों की रहाक्षी रहना पदेगा। तभी मातारानी भी यही प्रकट हुई। जिसका दरबार वार्ड नं 6 में स्थित है साथ ही शिवालय से शिय भी इस प्रकार भैंसदेही नगरी में माँ पूर्ण प्रकट हुई थी और भैंसदेही को माँ पूर्ण की नगरी के नाम से जाना जाने लगा आज भी यह है कि मातारानी के चरण स्थापना स्थल से दूर काशीतालाब तक है, ऐसो मान्यता है। नवरात्रि के पावन पर्व पर पूर्ण मंदिर काशीतालाब मंदिर में भी भक्तों की भीड़ लगती है।

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